डा भीमराव अम्बेडकर ने पासी समाज को नागकुल का माना है । गुप्तकाल में इन्हें दण्डपासी के नाम से जाना जाता था । वहीं अंग्रेजी में पासी का मतलब किंग बताया गया है । इनकी ज्यादा संख्या उत्तर प्रदेश व बिहार में पायी जाती है । पासी समाज अपने को राजवंशी कहता है । उत्तर प्रदेश में 12 वीं सदी तक ये राजा रहे हैं । उत्तर प्रदेश में महाराज लाखन पासी लखनऊ के शासक थे । उनकी मौत 1194 में हुई थी । बिजली पासी का किला आज भी लखनऊ के बीचोबीच स्थित है । इस किले का संरक्षण व सम्वर्धन उत्तर प्रदेश सरकार कर रही है । बिजली पासी ने अपनी मां बिजना के नाम पर बिजनागढ़ बसाया था । बिजनागढ़ को बिजनौरगढ़ भी कहा जाता है । बिजली पासी ने अपने पिता नट के नाम पर नटवागढ़ भी बसाया था । बिजली पासी का शासन 184 वर्ग मील के दायरे में फैला हुआ था ।
महाराज सुहेलदेव पासी का शासन बांगर मऊ में था । उन्होंने 52 किले बनवाए थे । कहते हैं कि उन्होंने आल्हा रूदल के साले को हराया था । महाराज सुहेलदेव पासी ने गजनी के सेनापति गाजी सैय्यद मसूद को भी लड़ाई में मार गिराया था । उसे बहराईच में दफनाया गया था । महाराज सुहेलदेव पासी का 11 वीं सदी के प्रारम्भ में अभ्युदय हुआ था । उन सुहेलदेव के पासी होने पर अभी हाल हीं में एक विवाद हुआ है । राज भर समुदाय उन्हें अपने समुदाय का मानता है । मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक बयान में महाराज सोहेलदेव को पासी कहा है । फिर क्या था ? राज भर समुदाय ने मुख्यमंत्री से माफी मांगने की मांग कर बैठा । उनका यहां तक कहना है कि यदि योगी आदित्यनाथ ने अगर दुबारा महाराज सोहेल देव को पासी कहा तो वे प्रदेश भर में धरना प्रदर्शन करेंगे । वैसे पासियों की एक शाखा भर पासी की भी होती है । ये भर पासी जब राज काज चलाने लगे तो इन्हें राज भर पासी कहा जाने लगा । कुछ लोगों ने महाराज सोहेलदेव को जैन धर्म का राजा भी माना है ।
पासियों को “अनुसूचित जाति ” में रखा गया है । इनके टाइटिल सरोज , राज पासी , भर पासी , रावत , बोरासी और बहोरिया आदि हैं । जिन लोगों ने इस्लाम कुबूल कर लिया है , उन्हें ” तुर्क पासी ” कहा जाता है । उड़ीसा में इन्हें भुरजा कहा जाता है , जो भर पासी का हीं एक रूप है । पासी समुदाय नेपाल , असम , बंगाल , बिहार व उत्तरप्रदेश में करोड़ों की तादाद में हैं । अरूणांचल के सीमांत में ” पासी घाट ” नाम से पूरे क्षेत्र को जाना जाता है । पासी घाट के पासी बड़े धनाढ्य हैं । आन्ध्र में ये किंग पासी के नाम से जाने जाते हैं । उत्तर प्रदेश में ये 12 वीं सदी के अंत तक राजा रहे थे । पासी जाति का मुख्य गढ़ उत्तर प्रदेश व बिहार है । शासन से विलग होने के बाद इनका मुख्य पेशा ताड़ी निकालना रहा है ।
कहा जाता है कि पासी का लट्ठ केवल पठान हीं झेल सकता है । अमृत लाल नागर ने अपने उपन्यास ” एकदा नैमिषारण्य ” में कहा है कि बनवासी समाज पर नियंत्रण के लिए पासी लठैत भर्ती किये जाते थे । ऊदा देवी पासी ने 16 नवम्बर 1857 को सिकंदर बाग के एक पीपल के पेड़ से 32 अंग्रेज सैनिकों को नेस्तनाबूद किया था । ऊदा देवी पासी नवाब वाजिद अली शाह की महिला सेना की सेनापति थीं । उनके पति का नाम मक्का पासी था । पति भी वाजिद अली शाह की सेना में सिपाहसालार थे।मक्का पासी की शहादत के बाद ऊदा देवी पासी ने बदला लेने के लिए रौद्र रूप धारण कर लिया । सिकंदर बाग में वाजिद अली शाह की सेना के 2000 सैनिक छिपे हुए थे । अंग्रेज सैनिकों ने चारों तरफ से सिकंदर बाग को घेर रखा था । ऊदा देवी पासी ने पीपल के पेड़ पर चढ़कर अंग्रेज सैनिकों पर गोलियां बरसानी शुरू कर दी । 32 अंग्रेज सैनिक ढेर हो गये । ऊदा देवी पासी को भी एक गोली लगी । वे पीपल के पेड़ से गिरकर शहीद हो गयीं । अंग्रेज सेना नायक कैल्विन कैम्बवेल ने ऊदा देवी पासी के लिए अपना हैट उतारकर उन्हें सम्मान दिया था । ऊदा देवी पासी की शहादत को सम्मान देने के लिए उनकी एक मूर्ति सिकंदरा बाग में लगायी गयी है ।
पासी जुझारू योद्धा हुआ करते थे । राज पाट खत्म होने के बाद इन लोगों ने अपनी सेवाएं भारतीय सेनाओं को देनी शुरू की । लड़ाई लड़ने व राज काज सम्भालने की वजह से ये लोग अपने को क्षत्रिय या उसके समकक्ष मानते हैं । अंग्रेजों से लड़ने की वजह से अंग्रेजों ने पासी समुदाय के साथ लगभग 200 जनजातियों पर जरायम एक्ट लागू कर दिया । जरायम एक्ट के कारण इन जनजातियों को अपराध , डकैती व लूट का दोषी करार दिया जाता । बेगुनाह होने पर भी इनको जेल में डाल दिया जाता । इनके बच्चों को जन्म से हीं अपराधी माना जाता था । पासी समुदाय और दूसरी जन जातियों ने भी हार नहीं मानी । वे जल , जंगल और जमीन के लिए अंत तक अंग्रेजों से लड़ते रहे ।
पासी समुदाय और अन्य 200 के लगभग जनजातियां आजादी के 5 साल बाद भी जरायम एक्ट से परेशान रहीं । जरायम एक्ट अगस्त 1952 में वापस लिया गया । इस एक्ट को वापस लेने के पीछे पासी नायक बापू मसुरिया दीन पासी का सतत् संघर्ष था । बापू मसुरिया दीन पासी पंडित नेहरू के समकालीन थे । वे देश की आजादी के लिए 9 साल तक जेल में रहे थे । बापू मसुरिया दिन का जन्म 2 अक्टूबर 1911 को हुआ था । आज गांधी जी , शास्त्री जी का जन्म दिन 2 अक्टूबर को सभी मनाते हैं , पर बापू मसुरिया दिन पासी को कोई याद नहीं करता ।
bahut hi umda lekh jo mujhe itihas ki gauravshali pratibhao se roobru krata h ,thank you by heart
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteInformation
पासी जाती कि उपजाती ओर उन जतियो क नाम अगर है तो पिलिज बातदिजिये धन्यवाद
ReplyDeleteRajpasi kathwash goojar tadmali khatik
ReplyDeletePasi mangta bhar etc
राजवंशी,रावत,राजपासी,पासी समाज की उपजाति है।
ReplyDeleteJai maharaja suheldev pasi
ReplyDeleteजय पासी समाज 🙏
ReplyDeleteबहुत ही सही लेख
ReplyDeleteसलाम आपको
Jai pasi
ReplyDeleteमेरी आँख भर गया दोस्त हमलोग राजा से रंक बन गये
ReplyDeleteतभी तो कहु पासी किसी से डरता क्यु नही हैं।
आज मालुम चला पासी के खुन में पासी राजाओ की खुन जिंदा हैं।
अब पासी लोग को अपना हक के लिए लडना चाहिए
जय पासी साम्राज्य
Sahi kaha dada
Delete🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️
DeleteJai suheldev pasi ji ki
ReplyDeleteसब सही है पर इसमें जहा पर आपने सुहेलदेव पासी लिखा है वहा सातन पासी होगा
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